आज एक ग़लत फहमी दूर करने का मन है और बहुत तगड़े से मन है ।आदत के विपरीत पोस्ट काफी लंबी होने वाली तो या तो पूरा पढ़े या रहने दे आपकी मर्ज़ी । वार्निंग भी दे ही दे की बुरा लग सकता हैं पढ कर पर यह मेरा चरित्र नहीं की लोगो को खुश रखा जाए। पोस्ट तीन खण्ड में विभाजित है।
१. साल 1997 , सिक्स्थ स्टैंडर्ड में थे वाराणसी में । काफी बड़ा स्कूल था और नामी भी । काफी बड़े घर के बच्चे आते थे पढ़ने के लिए और पढ़ाई का स्तर भी ऊचा था । सिक्स्थ में जब वहां पर एडमिशन ले कर पहुंचे तो क्लास में एक लड़का हुआ करता था कनय ( पूरा नाम नहीं लिखेगे ) । सुधरे बाप की बिगड़ी औलाद। ऐसा कोई क्लास का पीरियड नहीं होता था जब उसको या तो डांट ना पड़े या उसको क्लास के बाहर हैंड्स अप करे खड़ा होने की सज़ा ना हो । पढ़ाई में एवरेज पर खेल में टॉप पर था। इस वजह से उसकी काफी सीनियर्स के साथ अच्छी दोस्ती थी और उसमें गज़ब की स्पोर्ट्समैन शिप थी । मुझे याद है की उसकी ड्रॉईंग कमाल की थी और उसने कई बार मेरी कॉपी पर मेरा ड्रॉईंग का होमवर्क भी करा था । उसका बेस्ट फ्रेड़ चेतन हुआ करता था जिसके पिताजी आर्मी में अधिकारी थे और वोह खुद क्लास में काफी अच्छा विद्यार्थी था । मै जब कक्षा सात में आईं तो मेरे डैड का ट्रांसफर जम्मू कश्मीर हो गया पर क्योंकि कनय के पापा और मेरे डैडी बहुत अच्छे दोस्त थे तो उनसे संपर्क बना रहा । चेतन के पिताजी का भी ट्रांसफर हुआ और वोह भी स्कूल छोड़ कर चला गया । हम लोग फिर भी कनेक्टेड थे और आज भी है । जब क्लास 12 का रिजल्ट आया उससे थोड़े समय के बाद NDA का भी नतीजा निकला । सबको लग रहा था की क्योंकि चेतन टॉपर था उसका तो एनडीए में हर हाल में चयन होगा पर हुआ इसका उल्टा। कनय पहली ही बार में सेलेक्ट हुआ और ट्रेनिंग के लिए पुणे चला गया और चेतन नहीं हो पाया। चेतन को इस बात का काफी दुख था की वो अपने पिताजी की तरह सेना नहीं ज्वाइन कर पाया और उसको थोड़े वक्त के लिए अवसाद भी हुआ । सबको हैरानी थी की इतना होशियार लड़का क्यो नहीं सेलेक्ट हो पाया । जिसका मैथ्स साइंस इतना सटीक हो फिर भी ??? वक्त गुज़रा और अब चेतन जर्मनी में है और कनय मेजर है भारतीय सेना में । चेतन को उसका जवाब पांच साल पहले तब मिला जब वोह दिल्ली से वाराणसी की ट्रेन में घर जा रहा था ।उसके सामने वाली सीट पर एक रिटायर्ड ब्रिगेडियर साहब थे । चेतन ने जब अपनी असफलता उनको बताई तब उन्होंने कहा की “son you were over qualified for army ,हमको वोह लोग नहीं चाहिए जो ज़्यादा दिमाग यूज करे हमे ऑर्डर्स को आंख बंद कर के फॉलो करने वाले लोग चाहिए और तुम वैसे नहीं हो ।” चेतन को उसका जवाब मिल गया की उसका स्तर आर्मी का नहीं था और वो उस के लायक नहीं था ।
2. दिल्ली में वर्ष 2008 में सरकारी अधिकारियों के कंपाउंड के पड़ोस में एक दीदी हुआ करती थी । नाम नहीं लिखेगे। बड़े सरकारी अधिकारी की बेटी । उनको मेडिकल में जाना था । वो चार बार से कोशिश कर रही थी और उनका सिलेक्शन नहीं हो पा रहा था । क्योंकि उनके डैडी डियरेस्ट एक बड़े अधिकारी थे और पैसों की कोई कमी नहीं थी तो उनकी ज़िद्द पूरी करते हुए उनका दाखिला प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में काराया गया । थोड़े दिन तो उन्होंने बड़े मन लगा कर पढ़ाई करी पर बाद में एग्जाम्स में बैकस आनी शुरू हुई । जैसे तैसे उन्होंने परीक्षा पास करी और डॉक्टर बन गई। तीन साल पहले हॉस्पिटल में एक इमरजेंसी केस आया और उन्होंने गलत इंजेक्शन लगा दिया । इस वजह से मरीज की मौत हो गई और परिजनों ने उन पर मुकदमा दर्ज कर दिया। मेडिकल नेगलिजेंस के चलते आईपीसी की धारा 403 A के तहत उन पर कार्यवाही हुई और शायद उनका मेडिकल लाइसेंस भी खतरे में है । उनका हर चीज़ पा लेने का घमंड आज उन्हीं को ले डूबा…
3. यह मेरे खुद का किस्सा है । 2009 में इंडियन इंस्टिटयूट आफ मास कम्यूनिकेशन से ग्रेजुएट होने के समय तक बाज़ार में रिसेशन अा चुका था । जहां बड़े बड़े मीडिया हाउस आते थे प्लेसमेंट के लिए वहां एकदम खामोशी थी परिसर में । आईबीएन 7 में इंटर्नशिप करने के बाद दूरदर्शन में नौकरी लगी । पर सरकारी चैनल में कुछ करने को नहीं था इसलिए नहीं गए। ओनजीसी के फाइनलिस्ट में नाम था पर चेन्नई नहीं जाना था इसलिए वापस लखनऊ चले गए । डैड भी वहीं पोस्टेड थे तो अपने घर से इतने दूर रहने का मन भी नहीं था । तीन महीने बाद नौकरी लगी सहारा समय में पर डेस्क समझ नहीं आती थी तो नहीं करें। सोचा विदेश चले जाते है आगे पढ़ाई करने के लिए और यूनिवर्सिटी में अप्लाई कर दिए पर दुर्भाग्य से statement of purpose रिजेक्ट हो गई और दोबारा बेझने में काफी अंतराल था । एक दिन हज़रत गंज में घूम रहे थे की दोस्त ने एक बड़े बिलबोर्ड की तरफ इशारा कर के कहा ” जबतक इंडिया में हो आईएएस की तैयारी कर लो । विषयों पर अच्छी पकड़ है क्या पता हो ही जाए “। हम भी पता नहीं किस झोंक में चले भी गए और तैयारी शुरू कर दी । क्योंकि पत्रकार थे ही तो करंट अफेयर्स से लेकर पॉलिटिकल साइंस की अच्छी जानकारी थी। फैकल्टी ने सर पर चाड़ा दिया की तुम्हारा तो ज़रूर से होगा पर अंदर से कभी मन नहीं किया की तैयारी करे। जाते थे दोस्तो से मिलने और नई जानकारी को लेने पर कब शौक से यह एग्जाम मज़बूरी बन गया पता ही नहीं चला। गले का फंदा जो अटक गया था । जब आलरेडी सेलेक्ट हुए लोगो से मिलते थे तो उनका ज्ञान सामान्य ही लगता था । वोह खुद कहते की आप बस यह किताबो को चाट जाओ पुराने पेपर्स कर डालो और लगे रहो। जब उनसे काम के बारे में पूछते तो एक अजीब सा एक्सप्रेशन दे कर वोह कहते की यह सरकारी नौकरी है यहां सुविधा है सैलरी है पर आजादी नहीं । मुझे लगता था की जिस चीज को सबसे ज़्यादा अहमियत देती हूं वोह ना मिले तो क्या फायदा ।एक ही जीवन है उसे भी सिर्फ दो जून की रोटी में बर्बाद कर दू । खैर ,बात अहम पर अा गई थी और अब तो रिश्तेदार भी कहने लगे की कब हो रहा है सिलेक्शन? कभी दिल्ली नहीं गए ,कभी तीन महीने कोचिंग लेने के बाद दोबारा नहीं की क्योंकि पता था हम इसके लिए नहीं है । अपने सारे attempts के बीच सब करा सिवाय सिलेब्स को स्टडी करने के । ग्रास रूट पर काम करते रहे , भाषा सीखे नई , कई किताबे पढ़े , जानवरो के बारे में स्टडी करा , tarot सीखे, योग विद्या की जानकारी ली और हल्का फुल्का गिटार भी सीख लिया । मतलब सब करा सिवाय सिलेबस कवर करने के । जब कोई पूछता था पेपर कैसा हुआ तो कह देते बस यही साल देखो पर नतीजा तो पता ही होता था । ख़ैर,अब दूर दूर तक कोई अटेम्प्ट की गुंजाइश नहीं है नाही दवाब की। जब रिजल्ट आता है तब मम्मी कहती है की सब कहते है देखो इसका नहीं हुआ और हम हंस देते है । जिस चीज़ को पाने की ना ख्वाहिश थी ना ही उसकेमउसके लिए करी वोह मिले ना मिले क्या फर्क पड़ता है।
आपको पता है मुझमें और कनय में क्या सामान्यता थी या है?? हम दोनों ने कभी दूसरो का अहम सेटिस्फाई नहीं होने दिया । हम भले ही दुनिया की नज़रों में लूजर है पर कहीं ना कहीं जो हम करना चाहते थे वोह कर रहे है । इंडिया का एजुकेशन ही ऐसा है की सब भेड़ चाल में चलते है । ” अरे! वोह आईएएस हो गया है उसको लाल बत्ती मिला है क्या लाइफ है उसकी चलो हम भी तैयारी करते है “। ” वाह! सफेद कोर्ट , मेरे घर में सब डॉक्टर है तो मै भी वही बनूंगा “। ” सेना बहुत एडवेंचरस है नय मौके मिलते है हम भी सेना में जाएंगे ” । “आईआईएम से एमबीए कर ले तो लाइफ सेट है जैसे ताऊजी की लड़की ने करी है ” । इन सब में इंसान कुछ पाए भले ही ना पर खो देता है समय आत्मविश्वास और मौके । थोड़े दिन में खुद को इतना बेजार समझने लगता है जितना लोग भी ना सोचे। भारत का बेस्ट ब्रेन आज भी अन्यूज्ड है यह याद रखे ज़रूरी नहीं जो आप चाह रहे थे उसी में आप बेस्ट होते , हो सकता हैं आप कुछ और करने के लिए बने हो। आप बहुत कुछ कर सकते है बस याद रखे आप क्या सच में करना चाहते हैं । तुलना करने में अपना जीवन ना बर्बाद होने दे। किसी से अपना जीवन तौलना सिर्फ जलन कुंठा और हताशा देता है और अहम को पैदा करता है । फेसबुक और इंस्टाग्राम पर डाली हुई तस्वीर अपने सच से कोसो दूर होती है , आभासी दुनिया में खुशी ना तलाशे। हताश इंसान अपनी खुशी दूसरों की नाकामयाबी में खोजने लगते है और अपनी हासिल की हुई चीजो से महरूम होने लगते है पर आप ऐसे इंसान ना बने । सबका अपना भाग्य है ।किसने क्या पाया क्या खोया इससे क्या लेना देना । सब की लाइफ का एक उद्देश्य है वोह देर सवेर उस पर सब पहुंच ही जाते है ….